
हिन्दी कवि सम्मेलनों के विख्यात मंच-संचालक एवं गीतकार डॉ कुमार विश्वास के कलम से:
अम्बर ने पूर्ण विराम दिया, सौरभ के चयन प्रबंधों को।
बुन्देल-खंड का भार मिला, कुरु-कुल के सक्षम कंधो को॥
स्वर-अम्बर, शब्द-सुमन के इस परिणय का है भावार्थ यही।
बेतवा नदी की धार मिली, गंगा-जल के तट-बंधो को॥
जब तक अम्बर में सौरभ है, जब तक यह सुमनित धरा रहे।
हे अनुज! तुम्हारी क्षमता का, तूणीर हमेशा भरा रहे॥
मैं शब्द साधको के कुल का हूँ, ज्येष्ठ तुम्हारा पिता तुल्य।
हे अनुज वधू! आशीष तुम्हे, सिंदूर हमेशा हरा रहे॥
-डॉक्टर कुमार विश्वास
हे अनुज! तुम्हारी क्षमता का, तूणीर हमेशा भरा रहे॥
मैं शब्द साधको के कुल का हूँ, ज्येष्ठ तुम्हारा पिता तुल्य।
हे अनुज वधू! आशीष तुम्हे, सिंदूर हमेशा हरा रहे॥
-डॉक्टर कुमार विश्वास
2 comments:
जब भी हम नापते हैं , खुद को ज़माने भर से
जाने क्यूँ सब से ये एहसास जुदा आता है
दोस्ती ,प्यार , वफ़ा और मोहब्बत ये सब
नाम दुनिया के हैं पर याद खुदा आता है
wow.........grt8 line ..
bilkul vishavas ji sabe alag hain.!
apko badhai vishvas ji ...is pyar bhari bhet ke liye jo aapne nav vihahoto ho di hai...!
bahut pashand aai hame.
www.ravirajbhar.blogspot.com
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