
काव्य मंचो के शिखर पुरुष कवि सुरेन्द्र शर्मा का आशीर्वाद उन्ही के अंदाज मे:
"सौरभ" रहे सुमन का यूं, "अम्बर" तक रहे खुलापन।
एक-दूजे के लिए जियें, नित गहराए अपनापन॥
बढ़ता रहे समर्पण इनका, तृप्ति सदा ये पाएं।
खुशियों की बारिश मे भीगे, प्रेम सुधा बरसायें॥
"सुमन का सौरभ, अम्बर को महकाए।
अनामिका को कभी अंगूठा ना दिखलाये।"
-कवि सुरेन्द्र शर्मा.